ओ३म् भूर्भुव: स्व:।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न प्रचोदयात् ।।
यजु: 36.3
हे प्राणस्वरूप दुखहर्ता, सकल जगत के उत्पादक हो।
हम ध्यान धरते आपका, जो बुद्धि के प्रकाशक हो ।।
हे परमपिता सदा हमारी सद्बुद्धि प्रकाशित कीजिये।
सत्कर्मों में लगी रहे बुद्धि हमारी, ऐसा आशीष दीजिये।।
ओ३म् विश्वानि देव।
सवितर्दुरितानि परासुव।
यद भद्रं तन्नआसुव।।
यजु: 30.3
तू सर्वेश सकल सुखदाता,शुद्ध स्वरूप विधाता है।
उसके कष्ट नष्ट हो जाते,शरण देती जो जाता है।।
सारे दुर्गुणों दुव्यसनों से, हमको नाथ बचा लीजे।
मंगलमय गुण-कर्म पदारथ,प्रेम सिन्धु हमको दीजे।
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