‘ब्रह्मयज्ञ’ के अनुष्ठान अर्थात् परमात्मा की पूजा-स्तुति,प्रार्थना और उपासना पूर्ति हेतु गायत्री मन्त्र एक अचूक साधन है। इस मन्त्र में ब्रह्मयज्ञ के तीनों अंग अर्थात स्तुति,प्रार्थना और उपासना,पूर्णरूप से समाहित है। गायत्री मन्त्र ओ३म् भूर्भुव: स्व:। तत् सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।। (यजुर्वेद अ.३६-मं.३) ओ३म परमात्मा का मुख्य नाम (भू:) प्राणाधार (भुव:) दुख विनाशक (स्व:) सर्वव्यापक तथा धारणकर्ता (सवितु:) सृष्टि उत्पादक पालन कर्ता तथा प्रलयकर्ता (वरेण्य) ग्रहण करने योग्य (भर्ग:) शुद्ध स्वरूप तथा पवित्र कर्ता (देवस्य) सब सुखों का दाता (तत्) तेरे इस स्वरूप को (धीमहि) धारण करें (य:) हे देव परमात्मा (न:) हमारी (धिय:) बुद्धियों को (प्रचोदयात) प्रेरणा करें अर्थात बुरे कामों से छुड़ा कर अच्छे कामों में प्रवृत करे। गायत्री मंत्र का स्तुति भाग मंत्र की तीन व्याहृतियां (भू:, भुर्व: स्व:) तथा प्रथम पाद के चार अक्षर (तत् सवितुर्वरेण्यम, भर्गो देवस्य) परमात्मा की स्तुति अर्थात उसके गुणों का स्मरण कराते हैं। गुणों के चिन्तन से अन्त:करण में परमात्मा के प्रति श...