दयानन्द का ऋण चुकाते रहेंगे।
मधुर वेद की वीणा बजाते रहेंगे।।
सोते हुओं को जगाते चलेंगे।
रोते हुओं को हंसाते रहेंगे।।
जिन्हें मांस मदिरा का चसका लगा है।
उन्हें दूध गाय का पिलाते चलेंगे।।
हमारी जो मां बहनें भटकी हुईं हैं।
उन्हें वेद विद्या पढ़ाते चलेंगे।।
अछूतों को दे लात ठुकरा रहे जो
उन्हें हम गले से लगाते रहेंगे।।
धर्म छोड़ अपना विधर्मी बने जो।
उन्हें धर्म वैदिक पर लाते चलेंगे।।
जो वापस में दिन रात लड़ते झगड़ते।
उन्हें संगठन कर मिलाते चलेंगे।।
दयानन्द की आज्ञा पालन करेंगे।
बनें आर्य जग को बनाते चलेंगे।
मधुर वेद की वीणा बजाते रहेंगे।।
सोते हुओं को जगाते चलेंगे।
रोते हुओं को हंसाते रहेंगे।।
जिन्हें मांस मदिरा का चसका लगा है।
उन्हें दूध गाय का पिलाते चलेंगे।।
हमारी जो मां बहनें भटकी हुईं हैं।
उन्हें वेद विद्या पढ़ाते चलेंगे।।
अछूतों को दे लात ठुकरा रहे जो
उन्हें हम गले से लगाते रहेंगे।।
धर्म छोड़ अपना विधर्मी बने जो।
उन्हें धर्म वैदिक पर लाते चलेंगे।।
जो वापस में दिन रात लड़ते झगड़ते।
उन्हें संगठन कर मिलाते चलेंगे।।
दयानन्द की आज्ञा पालन करेंगे।
बनें आर्य जग को बनाते चलेंगे।
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