प्रथम मन्वन्तर के सप्तऋषियों में मरीचि, अत्रि, पुलाहा, कृतु,पुलस्त्य,वशिष्ठ, अंगिरा ऋषि थे । ऐसा कहा जाता है कि अथर्वन ऋषि के मुख से सुने मंत्रों के आधार पर ऋषि अंगिरा ने चार वेदों में से एक अथर्ववेद को साकार रूप दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने तीन अन्य वेदों ऋग्वेद,सामवेद और यजुर्वेद की रचना में भी काफी सहयोग किया। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना में सहायता के लिए अपने मानसपुत्रों और प्रजापति को रचा। उसके बाद उनकी यह इच्छा हुई कि इन मानसपुत्रों और प्रजापतियों का कल्याण कैसे हो, इसके लिए उन्होंने एक बुद्धि यानी ज्ञानी पुत्र की आवश्यकता महसूस की और उन्होंने अपने पूर्ण तेज के साथ एक पुत्र की रचना रची। ये वही रचना थे महर्षि अंगिरा जी। अंगिरा ऋषि शुरू से बहुत ही तेजवान,बुद्धिमान और आंतरिक अध्यात्मिक क्षमता वाले थे। अंगिरा ऋषि में सम्पूर्ण जगत को ज्ञान देने की क्षमता थी। अंगिरा ऋषि को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्माजी ने संदेश दिया कि अंगिरा तुम मेरे तीसरे मानस पुत्र हो। तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि तुम्हारा जन्म क्यों हुआ है और तुम इस जगत में क्यों आए हो? यह तुम्हें बताता हूं। संदेश...
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