परमपिता परमात्मा ओ३़म् ने सृष्टि की रचना की और उसने चौरासी लाख योनियों में से मानव जीवन देकर मनुष्य को उपकृत किया है। जन्म-मरण के चक्रव्यूह से निकलने के लिए ही मानव का जीवन दिया है। इस गूढ़ सत्य को जानकर हमें ईश्वर की शरण में जाना चाहिये । सच्चे ईश्वर की आराधना करके और अपने मन,वचन और कर्म में सात्विकता लाकर सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए ताकि जीवन का असली लक्ष्य हासिल किया जा सके। मानव जीवन का असली लक्ष्य यानी मूल मंत्र परमगति अर्थात् मोक्ष है। मोक्ष को हासिल करने के लिए सबसे पहले हम पहचानें कि हमें किसकी आराधना करनी है और किस प्रकार करनी है। । सर्वप्रथम हम जाने कि ईश्वर है कौन? परमगति यानी मोक्ष है क्या ? उसके बाद ही हम ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें तो जीवन सफल होगा।
इयं हि योनि: प्रथमा यां प्राप्य जगतीपते। आत्मा वै शक्यते त्रातु कर्मभि: शुभ लक्षणै:।।
मनुष्य जीवन ही परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इससे श्रेष्ठ रचना अन्य कोई नहीं है। यह मनुष्य योनि ही सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि इसे पाकर जीवात्मा शुभ कर्मों द्वारा अपनी रक्षा अर्थात आत्म विकास कर सकता है। यही एक कर्मयोनि है, जिसमें कर्म करने की स्वतन्त्रता मिलतीं है अन्य योनियां तो जेलखाने हैं, वे भोग योनियां हैं, जिनको पाकर जीवात्मा अपनी-अपनी योनि में किये कर्मों का फल भोगता है।
आइए जानें कि वेदों और आर्ष ग्रन्थों में किसको सच्चा ईश्वर कहा गया है-
ओं खम्ब्रह्मं।। यजुर्वेद अ. ४०। मं.१७
ओंकार परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है। इसमें जो अ, उ, और म् तीन अक्षर मिलकर ओ३म् शब्द बना है। इस एक नाम में सारा ब्रह्मांड समाया है। ओ३म् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता है, उसी की उपासना करनी चाहिए अन्य की नहीं। ‘ओ३म’ नाम सार्थक है। जैसे ‘अवतीत्योम्, आकाशमिव व्यापकत्वात् खम्, सर्वेभ्यो बृहत्वाद् ब्रह्म’ रक्षा करने से ‘ओम’, आकाशवत् व्यापक होने से ‘खम्’ सबसे बड़ा होने से ईश्वर का नाम ‘ब्रह्म’ है। ओमित्येतदक्षरमिद् सर्वं तस्योपव्याख्यानाम्।। सब वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम ‘ओ३म्’ को कहा है। अन्य गौणिक नाम हैं।
मोक्ष यानी परमगति किसे कहते हैं?
यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह। बुद्धिश्च न विचेष्टते तामाहु: परमां गतिम्।।
जब शुद्ध मन युक्त पांच ज्ञानेन्द्रियां जीव के साथ रहतीं है और बुद्धि का निश्चय स्थिर
होता है, उसको परमगति यानी मोक्ष कहते हैं। आइए अब ईश्वर से प्रार्थना करें।ओ३म् विश्वानि देव। सवितर्दुरितानि परासुव। यद भद्रं तन्नआसुव।। यजु: 30.3
हे जगतपिता परमात्मा तू समस्त सुखों का प्रदाता है, हे शुद्ध स्वरूप विधाता तू अपने उन भक्तों का पूरा ध्यान करता है जाता है तेरी शरण में आता है। हे प्रमु हमें सारे दुर्गुणों और दुव्र्यसनों से बचाकर मेरी रक्षा कीजिये। मंगलमय गुण-कर्म पदारथ और प्रेम का सागर कृपा करके हमें दीजिये।
इस प्रकार से हमें जीवन के मूल मंत्र का ज्ञान हो गया है। अत: हमें सही मार्ग तलाशना होगा।
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