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Showing posts from April, 2017

अगर महर्षि दयानन्द न होते तो...

अगर महर्षि दयानन्द न होते तो हम आज गुलामी का जीवन जी रहे होते, सती प्रथा से चारों ओर हाहाकार मचा होता, बाल विधवाओं का चारों ओर साम्राज्य दिखता। जगह-जगह वृंदावन की विधवाओं जैसे आश्रम होते। सबसे बड़ी बात आज जिस आधी आबादी और महिलाओं के अधिकार की बात हो रही है वह महर्षि दयानन्द की देन हैं। उनसे पहले महिलाओं को तरह-तरह की असभ्य पदवी से अपमानित किया जा रहा था। महिलाओं को पढऩे का अधिकार भी नहीं था। महर्षि दयानन्द ने ये सारी कुरीतियों को दूर कराकर महिला शिक्षा को बढ़ावा देकर  समान अधिकार दिलाया। ढोंग-पाखण्ड और पुराणपंथियों का साम्राज्य होता और वेदों का नाम जानने वाला कोई नहीं होता। यज्ञ हवन तो दूर की बात असली ईश्वर को भी कोई नहीं जान पाता। महर्षि दयानन्द के अवतरण के समय भारत पराधीन था। सर्वत्र अविद्या, अन्धकार,ढोंग-पाखण्ड,पोपलीला आदि की घटाएं छाई हुईं थीं। भारतीय संस्कृति,सभ्यता,साहित्य,संस्कार, परम्परा, आदर्शों आदि की होली हो रही थी। इतिहास में परिवर्तन करके उसे विकृत किया जा रहा था। सत्य सनातन वैदिक धर्म लुप्त हो रहा था। मन्दिरों में पण्डों और पुजारियों का बोलबाला था, पवित्र मन्दिर प...

कैसे पूर्ण हो महर्षि दयानन्द का सपना

ओ३म् इन्द्रं वर्धन्तोऽप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमाय्र्यम् अपघमन्तोऽरावण:। महर्षि दयानन्द का यह सपना था कि सम्पूर्ण विश्व आर्य बन जाए तो मानव का कल्याण स्वत: हो जाएगा। आर्य बनने के साथ ही दुनियां की सारी बुराइयां छू मन्तर हो जाएंगी और प्रत्येक मानव मानव से वसुधैव कुटुम्बकम् का नाता मानेगा और एकदूसरे को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। परन्तु यह सुन्दर स्वप्न महर्षि दयानन्द ने जगत कल्याण के लिए देखा है। यह पूर्ण किस तरह से हो, यह यक्ष प्रश्न अभी भी हमारे सामने है। महर्षि दयानन्द की विचारधारा के मानने वालों का यह परम कत्र्तव्य बन जाता है कि वह अपने मार्गदर्शक द्वारा दर्शाए गए मार्ग में चल कर उनका सपना पूर्ण करें। अब यह सपना किस तरह से पूर्ण होगा। इस पर प्रकाश डालते हैं। महर्षि देव दयानन्द ने वेद का मानव मात्र के लिए यह संदेश दिया है कि वह विश्व को आर्य बनाए। इतिहास साक्षी है कि वेद के इस आदेश का अनुपालन करने में प्राचीन वैदिक ऋषियों ने अपने सम्पूर्ण सुदीर्घ जीवनों को खपा दिया था और फिर भी उनकी यह लालसा सदा बनी रहती थी कि पुन: मानव की योनि में जन्म लेकर वेद के इस आदेश का पालन किया जाए। एक यु...

दयानन्द का ऋण चुकाते चलेंगे

दयानन्द का ऋण चुकाते रहेंगे। मधुर वेद की वीणा बजाते रहेंगे।। सोते हुओं को जगाते चलेंगे। रोते हुओं को हंसाते रहेंगे।। जिन्हें मांस मदिरा का चसका लगा है। उन्हें दूध गाय का पिलाते चलेंगे।। हमारी जो मां बहनें भटकी हुईं हैं। उन्हें वेद विद्या पढ़ाते चलेंगे।। अछूतों को दे लात ठुकरा रहे जो उन्हें हम गले से लगाते रहेंगे।। धर्म छोड़ अपना विधर्मी बने जो। उन्हें धर्म वैदिक पर लाते चलेंगे।। जो वापस में दिन रात लड़ते झगड़ते। उन्हें संगठन कर मिलाते चलेंगे।। दयानन्द की आज्ञा पालन करेंगे। बनें आर्य जग को बनाते चलेंगे।

देश की तकदीर बदलने में जुटे हैं स्वामी दयानन्द के शिष्य

आजादी मिलने के सात दशकों के बाद भारत माता का यश पूरे विश्व में चहुंओर फैल रहा है। आज विश्व में भारत की धाक एक शक्ति या यूं कहें महाशक्ति के रूप में जमी है। इसका मुख्य कारण युगपुरुष महर्षि दयानन्द के विचार और उनके अनुयायी ही हैं। आज देश में महर्षि दयानन्द के विचारकों का राज है। देश में आर्य संस्कृति का बोलबाला हो उठा है। आज शासन अपनी प्रजा के साथ न्याय कर पा रहा है। महर्षि दयानन्द जैसे निर्भीक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने फैसले ले रहे हैं। इसका परिणाम भी सकारात्मक जा रहा है। देश के गरीबों और अमीरों के साथ एक जैसा न्याय हो, इसके लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कमर कस ली है। गत आठ नवंबर को देश के गरीबों को अधिक से अधिक राहत पहुंचाने के लिए नोट बंदी का ऐलान किया तो लोग उन्हें डराने लगे कि आपकी सत्ता कभी भी जा सकती है। सत्ता से बेपरवाह नरेन्द्र मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा था कि हमारा क्या है, हम तो फकीर हैं, अपना झोला लेकर निकल पड़ेंगे। हमने अपना सारा जीवन देश और देशवासियों को दिया है और आगे भी देेंगे। उनकी इस बात का विश्वास देश की जनता ने किया और उन्हें उत्तर प्रदेश में ...

संकल्प-विकल्प से बाहर निकलें,आराधना करें

परमपिता परमात्मा ओ३़म् ने सृष्टि की रचना की और उसने चौरासी लाख योनियों में से मानव जीवन देकर मनुष्य को उपकृत किया है। जन्म-मरण के चक्रव्यूह से निकलने के लिए ही मानव का जीवन दिया है। इस गूढ़ सत्य को जानकर हमें ईश्वर की शरण में जाना चाहिये । सच्चे ईश्वर की आराधना करके और अपने मन,वचन और कर्म में सात्विकता लाकर सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए ताकि जीवन का असली लक्ष्य हासिल किया जा सके। मानव जीवन का असली लक्ष्य यानी मूल मंत्र परमगति अर्थात् मोक्ष है। मोक्ष को हासिल करने के लिए सबसे पहले हम पहचानें कि हमें किसकी आराधना करनी है और किस प्रकार करनी है। । सर्वप्रथम हम जाने कि ईश्वर है कौन? परमगति यानी मोक्ष है क्या ? उसके बाद ही हम ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें तो जीवन सफल होगा। इयं हि योनि: प्रथमा यां प्राप्य जगतीपते। आत्मा वै शक्यते त्रातु कर्मभि: शुभ लक्षणै:।। मनुष्य जीवन ही परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इससे श्रेष्ठ रचना अन्य कोई नहीं है। यह मनुष्य योनि ही सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि इसे पाकर जीवात्मा शुभ कर्मों द्वारा अपनी रक्षा अर्थात आत्म विकास कर सकता है। यही एक कर्मयोनि है, जि...

कौन है ईश्वर, कैसें करें आराधना

मानव जीवन का असली उद्देश्य क्या है? परमपिता परमात्मा ओ३़म् ने सृष्टि की रचना की और उसने चौरासी लाख योनियों में से मानव जीवन देकर मनुष्य को उपकृत किया है। जन्म-मरण के चक्रव्यूह से निकलने के लिए ही मानव का जीवन दिया है। इस गूढ़ सत्य को जानकर हमें ईश्वर की शरण में जाना चाहिये । सच्चे ईश्वर की आराधना करके और अपने मन,वचन और कर्म में सात्विकता लाकर सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए ताकि जीवन का असली लक्ष्य हासिल किया जा सके। मानव जीवन का असली लक्ष्य यानी मूल मंत्र परमगति अर्थात् मोक्ष है। मोक्ष को हासिल करने के लिए सबसे पहले हम पहचानें कि हमें किसकी आराधना करनी है और किस प्रकार करनी है। । सर्वप्रथम हम जाने कि ईश्वर है कौन? परमगति यानी मोक्ष है क्या ? उसके बाद ही हम ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें तो जीवन सफल होगा। इयं हि योनि: प्रथमा यां प्राप्य जगतीपते। आत्मा वै शक्यते त्रातु कर्मभि: शुभ लक्षणै:।। मनुष्य जीवन ही परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इससे श्रेष्ठ रचना अन्य कोई नहीं है। यह मनुष्य योनि ही सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि इसे पाकर जीवात्मा शुभ कर्मों द्वारा अपनी रक्षा अर्थात आत्म विक...

क्या हो जीवन का मूलमंत्र

‘‘न मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्’’। कहा जाता है कि चौरासी लाख योनियों के चक्रक्रम में मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ है। परमपिता परमात्मा आत्मा को मानव देह देकर यह संदेश देता है कि यही एक मौका है जिसमें वह प्रयास करके मोक्ष को प्राप्त कर ले अथवा स्वयं को फिर से चौरासी लाख योनियों के चक्रव्यूह में फंसा ले। इसलिए मानव जीवन का मूलमंत्र क्या होना चाहिए?

शंकराचार्य के बाद दयानन्द

यह निश्चित है कि शंकराचार्य के बाद दयानन्द से अधिक संस्कृतज्ञ, गंभीर, अध्यात्मवेत्ता,आश्चर्यजनक वक्ता और बुराई का निर्भीक प्रक्रारक भारत को प्राप्त नहीं हुआ। मैडम ब्लैवट्स्की