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जब कर्ण ने कृष्ण व कुन्ती की चक्रवर्ती सम्राट की पेशकश ठुकरा दी थी

दुर्योधन के साथ शान्ति वार्ता के विफल होने के पश्चात श्रीकृष्ण, कर्ण के पास जाते हैं, जो दुर्योधन का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है। वह कर्ण का वास्तविक परिचय उसे बतातें है, कि वह सबसे ज्येष्ठ पाण्डव है और उसे पाण्डवों की ओर आने का परामर्श देते हैं। कृष्ण उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि चूँकि वह सबसे ज्येष्ठ पाण्डव है, इसलिए युधिष्ठिर उसके लिए राजसिंहासन छोड़ देंगे और वह एक चक्रवती सम्राट बनेगा। पर कर्ण इन सबके बाद भी पाण्डव पक्ष में युद्ध करने से मना कर देता है, क्योंकि वह अपने आप को दुर्योधन का ऋणी समझता था और उसे ये वचन दे चुका था कि वह मरते दम तक दुर्योधन के पक्ष में ही युद्ध करेगा। जब महाभारत का युद्ध निकट था। तब माता कुन्ती कर्ण से भेंट करने गई और उसे उसकी वास्तविक पहचान का ज्ञान कराया। वह उसे बताती हैं कि वह उनका पुत्र है और ज्येष्ठ पाण्डव है। वह उससे कहती हैं कि वह स्वयं को कौन्तेय कहे नाकी राधेय और तब कर्ण उत्तर देता है कि वह चाहता है कि सारा सन्सार उसे राधेय के नाम से जाने नाकी कौन्तेय के नाम से। कुन्ती उसे कहती हैं कि वह पाण्डवों की ओर हो जाए और वह उसे राजा बनाएगें। तब कर्ण कहता है कि बहुत वर्ष पूर्व उस रंगभूमि में यदि उन्होनें उसे कौन्तेय कहा होता तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती। पर अब किसी भी परिवर्तन के लिए बहुत देर हो चुकी है और अब ये सम्भव नहीं है।
महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व, भीष्म ने, जो कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे, कर्ण को अपने नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में भागीदारी करने से मना कर दिया। यद्यपि दुर्योधन उनसे निवेदन करता है, लेकिन वे नहीं मानते। और फिर कर्ण दसवें दिन उनके घायल होने के पश्चात ग्यारहवें दिन ही युद्धभूमि में आ पाता है।

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परमात्मा ही प्राणों का उत्पादक तथा जीवों को उनके शुभाशुभ कर्मोँ के कर्म-फल रूप भोग में,उन्हें एक ‘निश्चित काल-खण्ड’ के लिये प्राणों की निश्चित मात्रा देता है। इस निश्चित मात्रा से स्पष्ट है कि श्वास और प्रश्वास की एक निश्चित संख्या परमात्मा द्वारा जीवों को प्रदान की गई है। इसी प्रकार परमात्मा ने जीवों को संसार में जन्म से पूर्व प्राण रहते अर्थात् श्वास और प्रश्वास चलते रहने के मध्य, भोगों की एक निश्चित मात्रा जीवों को पिछले जन्मों में कृत शुभाशुभ कर्मों के अनुसार भोग रूप में प्रदान की है। सभी जीवों में एक मनुष्य ही ऐसा जीव है जो ज्ञान तथा विज्ञान उपार्जन कर अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा प्राण और भोगों के उपभोग पर नियंत्रण रख अपनी आयु में वृद्धि कर सकने मेें सफलता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा से प्राप्त श्वास-प्रश्वास की संख्या तथा प्राप्त भोगों की मात्रा को व्यवस्थित रूप तथा योजनाबद्ध ढंग से व्यय करके अपनी आयु की वृद्धि कर सकता है। प्रथम विषय-भोग में अत्यधिक आसक्ति को त्याक मनुष्य प्राणों की प्राप्त पूंजी के व्यय पर नियंत्रण कर अधिक काल तक शरीर को जीवित रख सकने की व्यवस्था...

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