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जब तक वेदों का ज्ञान रहा, तब तक भारत रहा विश्व गुरू

वेदों के ज्ञान की उपेक्षा होते ही हम पूरे विश्व में उपेक्षित हो गये। हमने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। हमारी ही कमियां थीं और हम में से अधिकांश लोगों को वेदों का ज्ञान नहीं था। तभी हमारे ज्ञान के भंडार का मजाक उड़ाया और वेदों का बखान करने वालों को भी उपक्षित नजरों से देखा गया। यही कारण था कि ज्ञान से वंचित विदेशी लोगों ने वेदो को गड़रिया के गीत और वेदों का गान करने वाले ऋषियों को संपेरा और बीन बजाने वाला कहकर मजाक उड़ाया और हम उनका मुंहतोड़ जवाब न दे सके क्योंकि हमें वेदों का ज्ञान ही नहीं था। हम उन बेहूदे लोंगों का ही समर्थन करते रहे क्योंकि हम आधुनिकता की होड़ में अंधे हो चुके थे। वेदों का ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं है। इसलिये लोगों ने वेदों को ही छोड़ दिया। लेकिन वेदों का अध्ययन करें तो पाया जायेगा कि हम दुनिया भर से अलग क्यों थे , क्यों हैं और क्यों रहेंगे। इस बारे में एक श्रंखला शुरू कर रहे हैं। यह सामग्री आम जन को वेदों के प्रति अभिरुचि जगाने के लिए वेद वैचित्र्य नामक पुस्तक से ली जा रही है। हम इस पुस्तक के लेखक एवं प्रकाशित करने वाली संस्था के प्रति आभार प्रकट करते हैं। आओ ...
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पुकारता स्वदेश जाग-जाग नौजवान

  पुकारता स्वदेश जाग-जाग नौजवान, हो गया प्रभातकाल नींद त्याग नौजवान। बन शिवा,प्रताप,राम,भीम,कृष्ण के समान, याद करके पूर्वजों की वीरता व स्वाभिमान। हमारे पूर्वजों ने अखण्ड, श्रेष्ठ महाभारत, वैदिक मूल्यों से भरपूर एवं स्वतन्त्र भारत का स्वप्न देखा था । कुछ अवसरवादी स्वार्थी तत्वों के कारण अपने देश पर कई बार सामाजिक,आर्थिक एवं राजनीतिक परेशानियां आर्इंं। इन सभी परेशानियों को हमारे महापुरुषों ने अपने तप-त्याग, ज्ञान एवं सूझबूझ से हल भी किया। आज हमने उन्हीं महापुरुषों को भुला दिया, उन्हें उपेक्षित कर दिया। महापुरुषों को लेकर जो राजनीति की जा रही है। उसका परिणाम सामने है कि ं वर्तमान काल में हमारा समाज अपने महापुरुषों से ही अनभिज्ञ है। आज के युवाओं को इन महापुरुषों से रूबरू कराना अति आवश्यक है क्योंकि जब तक हम अपने महापुरुषों, जो उन्होंने कर दिखाया व भारत का गौरव बढ़ाता है, उसे अपने जीवन में आत्मसात नहीं करेंगे तो आज भी देश पर छाये विभिन्न प्रकार के संकट दूर नहीं होगें। इसीलिए उपरोक्त कविता की चंद पंक्तियों के माध्यम से हम युवाओं से इस ओर ध्यान देने का आवाहन कर रहे हैं। क्योंकि कहा जाता ह...

क्या है भारत का गौरव

भारत माता की पावन माटी को अपने रक्त से सींच कर हमारे लिए दुनिया की सबसे उर्वरा भूमि बनाने वाले महापुरुषों की जीवनगाथा प्रस्तुत कर उन्हें स्मरणांजलि अर्पित करने के साथ देश के कर्णधारों को ऐतिहासिक जानकारी देने वाला ग्रंथ

डाकू नहीं प्रचेतस ऋषि के दसवें पुत्र थे महर्षि वाल्मीकि

प्रारम्भिक जीवन में डाकू नहीं थे,तपस्या करने वाले महान ऋषि थे 16 अक्टूबर को होने वाली महर्षि जयंती पर विशेष श्री वाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभ प्रद। उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृहणीष्व मेऽर्चनम्। शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जो वाल्मीकि के नाम से परिचित न हो लेकिन उनके वृत्तान्त के बारे में इतिहास खामोश है। उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब हमें रामायण महाकाव्य में दृष्टिगोचर होता है। इस कृति ने महर्षि वाल्मीकि को अमर बना दिया। उनके अविर्भाव से संस्कृत साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इससे पूर्व का युग दैव युग के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि संस्कृत के सभी महान कवियों व नाटककारों के प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे सब कवियों के गुरु हैं। रामायण सभी काव्यों का मूल है। उनके शूद्र होने की कहानी मनगढं़त है किसी प्रमाणिक ग्रंथ में इसका उल्लेख भी नहीं है। ्श्री राम जब सीता को वाल्मीकि के आश्रम में छोडऩे के लिए लक्ष्मण को भेजते हैं तो कहते हैं कि वहां जो वाल्मीकि मुनि का आश्रम है, वे महर्षि मेरे पिता के घनिष्ठ मित्र हैं। महर्षि वाल्मीकि कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने तपस्या की थी।...

भगवान श्रीकृष्ण का असली चरित्र क्या है?

योगिराज श्रीकृष्ण के चरित्र से खेलते माखनचोर और रासलीला रचैया बताने वाले ओ3म।  श्रीकृष्ण का नाम आते ही लोगों के जेहन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का खुशियों भरा पर्व आ जाता है,क्योंकि उस समय चहुंओर संकट और सबलों के अत्याचार से त्राहिमाम करते लोगों को किसी महान आत्मा की आवश्यकता थी और वह महान आत्मा के रूप में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। उस समय विश्व के एकमात्र पूर्ण ज्ञानी,विवेकी,तपस्वी,योगिराज,कर्मयोगी थे श्रीकृष्ण। महाभारत और उससे पूर्व के ग्रंथों में मर्यादापूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में श्रीकृष्ण को जाना जाता था। उसके बाद भागवत सहित अन्य नौ ग्रंथों में श्रीकृष्ण के चरित्रहनन की बाल लीलाएं,रास लीलाएंं, चीरहरण आदि की कवियों की कपोल कल्पित कहानियों ने सम्पूर्ण इतिहास का ही नाश कर दिया। युगपुरुष महायोगी श्रीकृष्ण को एक माखनचोर,व्यभिचारी,विश्वासघाती,अवसरवादी सहित अनेक लांछनों से कलंकित कर दिया। ये सारी बातें आज हल्के-फुल्के मनोरंजन के साधन एवं धर्म की आड़ में व्यवसाय करने वालों ने अल्पशिक्षित व अशिक्षितों के बीच ऐसी फैला दीं कि मानों यही सत्य धर्म है। इन सबकी विवेचनाएं करने के लिए हम आ...

देव और ईश्वर में क्या अन्तर है

साधारण बोलचाल की भाषा में हम उसको देव मान लेते हैं जो दैवीय गुणों से सम्पन्न होता है। गांव-देहात की भाषा में बोलें तो सिर्फ देने वाला यानी दाता ही देव होता है। बाद में इस विचार में थोड़ा बदलाव आया है और मनुष्यकृत रचनाओं ने 33 करोड़ देवी देवताओं की रचना गढ़ दी। इसके बाद अवतारी महापुरुषों को भी देव बना दिया गया। विचार करने की बात है कि क्या 33 करोड़ देवी-देवा सृष्टि का संचालन कर रहे हैं। यदि सत्य है तो इससे बड़ा कोई आश्चर्य हो ही नहीं सकता लेकिन यदि इसे झूठ माना जाए तो करोड़ों अरबों लोगों की आस्थाओं को ठेस लगती है लेकिन अब सवाल उठता है सत्यता क्या है,और इसका सही जवाब कहां से खोजा जाए? इन सवालों के जवाब पर विचार किया जाए तो हमें वेदों की याद आती है। वेदों के ज्ञान ने हमें इस बारे में अंधकार से प्रकाश में लाने की सही राह दिखाई है। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने भी वेदों के माध्यम से हिन्दू समुदाय को नया जन्म दिया है। वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि ईश्वर सिर्फ एक है और उसका कोई आकार नहंीं है। उसके ही इशारे पर सारी सृष्टि चलती है। वैदिक धर्म में एक निराकार सर्वज्ञ,सर्वव्यापक न्यायक...

एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष सृष्टि सम्मत नया वर्ष नहीं है

ओ3म: एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष सृष्टि सम्मत नया वर्ष नहीं है। वैदिक गणना के अनुसार हमारा नववर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। उसी दिन से हमारें यहां चैत्रमाह का नवरात्र पर्व शुरू होता है। एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष ईसाई मत के मानने वालों के लिए नया वर्ष होता है । अन्य धर्म मानने वालों के लिए यह नया वर्ष नहीं होता है। इसके लिए सभी मत-मतांन्तरों के नये वर्ष की तिथियां अलग-अलग निर्धारित हैं। अब चूंकि विश्व के अधिकांश भाग में काफी से ईसाई मत के मानने वालों का प्रभुत्व चला आ रहा है। इसलिए वर्ष की गणना इसी दिन से शुरू होती है लेकिन यह वैदिक गणना के अनुसार सही नहीं है। ईसाई मत के मानने वालों का यह वर्ष 2018 है जबकि वैदिक गणना सृष्टि काल से चली आ रही है। सृष्टि की उत्पत्ति का 1968053118 वां वर्ष प्रारम्भ  होगा। आइए इस पर सिलसिलेवार प्रकाश डालें। वेदों की उत्पत्ति में कितने वर्ष हो गए हैं, इस सवाल के जवाब में आया है कि एक वृन्द छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार,नौ सौ छिहत्तर अर्थात 1968053118 वर्ष वेदों की और जगत की उत्पत्ति में हो गए हैं। यह कैसे न...