ओ3म:
एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष सृष्टि सम्मत नया वर्ष नहीं है। वैदिक गणना के अनुसार हमारा नववर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। उसी दिन से हमारें यहां चैत्रमाह का नवरात्र पर्व शुरू होता है। एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष ईसाई मत के मानने वालों के लिए नया वर्ष होता है । अन्य धर्म मानने वालों के लिए यह नया वर्ष नहीं होता है। इसके लिए सभी मत-मतांन्तरों के नये वर्ष की तिथियां अलग-अलग निर्धारित हैं। अब चूंकि विश्व के अधिकांश भाग में काफी से ईसाई मत के मानने वालों का प्रभुत्व चला आ रहा है। इसलिए वर्ष की गणना इसी दिन से शुरू होती है लेकिन यह वैदिक गणना के अनुसार सही नहीं है। ईसाई मत के मानने वालों का यह वर्ष 2018 है जबकि वैदिक गणना सृष्टि काल से चली आ रही है। सृष्टि की उत्पत्ति का 1968053118 वां वर्ष प्रारम्भ होगा। आइए इस पर सिलसिलेवार प्रकाश डालें।
वेदों की उत्पत्ति में कितने वर्ष हो गए हैं, इस सवाल के जवाब में आया है कि एक वृन्द छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार,नौ सौ छिहत्तर अर्थात 1968053118 वर्ष वेदों की और जगत की उत्पत्ति में हो गए हैं। यह कैसे निश्चय हो कि अतने ही वर्ष और वेद और जगत की उत्पत्ति में बीत गए हैं, इस सवाल पर विचार करने के बाद यह जवाब आया कि यह जो वर्तमान सृष्टि है, इसमें सातवें वैवस्वत मनु का वर्तमान है। इससे पूर्व छह मन्वन्तर हो चुके हैं। ये मन्ववन्तर हैं:- 1.स्वायम्भव, 2.स्वारोचिष, 3.औत्तमि, 4.तामस, 5.रैवत, 6. चाक्षुष और सातवां वैवस्वत मनु वर्त रहा है। सावर्णि आदि सात मन्वन्तर आगे भोगेंगे। ये सब मिलके 14 मन्वन्तर होते हेँ। और एकहत्तर चतुयुर्गियों का नाम मन्वन्तर धरा गया है। सो उसकी गणना इस प्रकार से है कि 17,28,000 यानी सत्रह लाख अ_ाइस हजार वषों का नाम सतयुग रख है। 12,96000 यानी बारह लाख छानवे हजार वषों का नाम त्रेता 8,64000 अर्थात आठ लाख चौसठ हजार वषों का नाम द्वापर और 4,32,000 अर्थात चार लाख बत्तीस हजार वर्षों का नाम कलियुग रखा गया है। आर्यो ने एक क्षण और निमेष से लेके एक वर्ष पर्यन्त भी काल की सूक्ष्म और स्थूल संज्ञा बांधी है। इन चारों योगों के 43,20,000 तितालिस लाख बीस हजार वर्ष होते हैं। जिनका चतुर्युगी नाम है। एकहत्तर चतुर्युगियों के अर्थात 30,67,20,000 तीस करोड़, सरसठ लाख और बीस हजार वर्षों की एक मन्वन्तर संज्ञा की है और ऐसे छह मन्वन्तर मिलकर 1,84,03,20,000 एक अरब,चौरासी करोड़, तीन लाख और बीस हजार वर्ष हुए और सवातवें मन्वन्तर के भोग में यह अटठाइसवीं चतुर्युगी है।
इस चतुर्युगी में कलियुग के 4,976 चार हजार नौ सौ छिहत्तर वर्षों का तो भोग हो चुका है और बाकी 4,27,024 चार लाख सत्ताइस हजार चौबीस वर्षों का भोग होने वाला है। जानना चाहिए कि 12,05,32,976 बारह करोड़, पांच लाख, बत्तीस हजार, नौ सौ छिहत्तर वर्ष तो वैवस्वत मनु के भोग हो चुके हें और 18,61,87,024 अठारह करोड़, एकसठ लाख, सत्तासी हजार चौबीस वर्ष भोगने के बाकी रह गए हैं। इनमें से यह वर्तमान 77 सतहत्तरवां है, जिसको आर्य लोग विक्रम का 1933 उन्नीस सौ तैंतीसवां संवत कहते हैं।
जो पूर्व चतुर्युगी लिख आए हैं, उन एक हजार चतुयुर्गियों की ब्राम्हदिन संज्ञा रखी है और उतनी ही चतुयुॢगयों की रात्रि संज्ञा जानना चाहिए। सो उत्पत्ति करके हजार चतुर्युगी पर्यन्त ईश्वर इस को बना रखता है। इसी का नाम ब्राह्म दिन रखा है। और हजार चतुर्युगी पर्यन्त सृष्टिको मिटा के प्रलय अर्थात कारण में लीन रखता है। उसका नाम ब्राह्मरात्रि रखा है। अर्थात सृष्टि के वर्तमान होने का नाम दिन और प्रलय का नाम रात्रि है। यह जो वर्तमान ब्राह्मदिन है इसके 1,96,08,52,976 एक अरब छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार नौ सौ छिहत्तर वर्ष इस सृष्टि की तथा वेदों की उत्पत्ति में भी व्यतीत हुए हैं और 2,33,32,27,024 दो अरब तैंतीस करोड़, बत्तीस लाख, सत्ताइस हजार चौबीस वर्ष इस सृष्टि को भोग करने के बाकी रहे हैं। इनमें से अन्त का यह चौबीसवां वर्ष भोग रहा है। आगे आनेवाले भोग के वर्षों में से एक एक घटाते जाना और गत वर्षों में क्रम से एक एक वर्ष मिलाते ेजाना,जैसे आज पर्यन्त घटाते बढ़ाते आए हैं। शंका समाधान के लिए आर्य समाज सूरजपुर के पूर्व प्रधान पं. महेन्द्र कुमार आर्य से सम्पर्क किया जा सकता है।
पं.महेन्द्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान, आर्य समाज सूरजपुर।
फोन-9910550037
एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष सृष्टि सम्मत नया वर्ष नहीं है। वैदिक गणना के अनुसार हमारा नववर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। उसी दिन से हमारें यहां चैत्रमाह का नवरात्र पर्व शुरू होता है। एक जनवरी से शुरू होने वाला नया वर्ष ईसाई मत के मानने वालों के लिए नया वर्ष होता है । अन्य धर्म मानने वालों के लिए यह नया वर्ष नहीं होता है। इसके लिए सभी मत-मतांन्तरों के नये वर्ष की तिथियां अलग-अलग निर्धारित हैं। अब चूंकि विश्व के अधिकांश भाग में काफी से ईसाई मत के मानने वालों का प्रभुत्व चला आ रहा है। इसलिए वर्ष की गणना इसी दिन से शुरू होती है लेकिन यह वैदिक गणना के अनुसार सही नहीं है। ईसाई मत के मानने वालों का यह वर्ष 2018 है जबकि वैदिक गणना सृष्टि काल से चली आ रही है। सृष्टि की उत्पत्ति का 1968053118 वां वर्ष प्रारम्भ होगा। आइए इस पर सिलसिलेवार प्रकाश डालें।
वेदों की उत्पत्ति में कितने वर्ष हो गए हैं, इस सवाल के जवाब में आया है कि एक वृन्द छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार,नौ सौ छिहत्तर अर्थात 1968053118 वर्ष वेदों की और जगत की उत्पत्ति में हो गए हैं। यह कैसे निश्चय हो कि अतने ही वर्ष और वेद और जगत की उत्पत्ति में बीत गए हैं, इस सवाल पर विचार करने के बाद यह जवाब आया कि यह जो वर्तमान सृष्टि है, इसमें सातवें वैवस्वत मनु का वर्तमान है। इससे पूर्व छह मन्वन्तर हो चुके हैं। ये मन्ववन्तर हैं:- 1.स्वायम्भव, 2.स्वारोचिष, 3.औत्तमि, 4.तामस, 5.रैवत, 6. चाक्षुष और सातवां वैवस्वत मनु वर्त रहा है। सावर्णि आदि सात मन्वन्तर आगे भोगेंगे। ये सब मिलके 14 मन्वन्तर होते हेँ। और एकहत्तर चतुयुर्गियों का नाम मन्वन्तर धरा गया है। सो उसकी गणना इस प्रकार से है कि 17,28,000 यानी सत्रह लाख अ_ाइस हजार वषों का नाम सतयुग रख है। 12,96000 यानी बारह लाख छानवे हजार वषों का नाम त्रेता 8,64000 अर्थात आठ लाख चौसठ हजार वषों का नाम द्वापर और 4,32,000 अर्थात चार लाख बत्तीस हजार वर्षों का नाम कलियुग रखा गया है। आर्यो ने एक क्षण और निमेष से लेके एक वर्ष पर्यन्त भी काल की सूक्ष्म और स्थूल संज्ञा बांधी है। इन चारों योगों के 43,20,000 तितालिस लाख बीस हजार वर्ष होते हैं। जिनका चतुर्युगी नाम है। एकहत्तर चतुर्युगियों के अर्थात 30,67,20,000 तीस करोड़, सरसठ लाख और बीस हजार वर्षों की एक मन्वन्तर संज्ञा की है और ऐसे छह मन्वन्तर मिलकर 1,84,03,20,000 एक अरब,चौरासी करोड़, तीन लाख और बीस हजार वर्ष हुए और सवातवें मन्वन्तर के भोग में यह अटठाइसवीं चतुर्युगी है।
इस चतुर्युगी में कलियुग के 4,976 चार हजार नौ सौ छिहत्तर वर्षों का तो भोग हो चुका है और बाकी 4,27,024 चार लाख सत्ताइस हजार चौबीस वर्षों का भोग होने वाला है। जानना चाहिए कि 12,05,32,976 बारह करोड़, पांच लाख, बत्तीस हजार, नौ सौ छिहत्तर वर्ष तो वैवस्वत मनु के भोग हो चुके हें और 18,61,87,024 अठारह करोड़, एकसठ लाख, सत्तासी हजार चौबीस वर्ष भोगने के बाकी रह गए हैं। इनमें से यह वर्तमान 77 सतहत्तरवां है, जिसको आर्य लोग विक्रम का 1933 उन्नीस सौ तैंतीसवां संवत कहते हैं।
जो पूर्व चतुर्युगी लिख आए हैं, उन एक हजार चतुयुर्गियों की ब्राम्हदिन संज्ञा रखी है और उतनी ही चतुयुॢगयों की रात्रि संज्ञा जानना चाहिए। सो उत्पत्ति करके हजार चतुर्युगी पर्यन्त ईश्वर इस को बना रखता है। इसी का नाम ब्राह्म दिन रखा है। और हजार चतुर्युगी पर्यन्त सृष्टिको मिटा के प्रलय अर्थात कारण में लीन रखता है। उसका नाम ब्राह्मरात्रि रखा है। अर्थात सृष्टि के वर्तमान होने का नाम दिन और प्रलय का नाम रात्रि है। यह जो वर्तमान ब्राह्मदिन है इसके 1,96,08,52,976 एक अरब छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार नौ सौ छिहत्तर वर्ष इस सृष्टि की तथा वेदों की उत्पत्ति में भी व्यतीत हुए हैं और 2,33,32,27,024 दो अरब तैंतीस करोड़, बत्तीस लाख, सत्ताइस हजार चौबीस वर्ष इस सृष्टि को भोग करने के बाकी रहे हैं। इनमें से अन्त का यह चौबीसवां वर्ष भोग रहा है। आगे आनेवाले भोग के वर्षों में से एक एक घटाते जाना और गत वर्षों में क्रम से एक एक वर्ष मिलाते ेजाना,जैसे आज पर्यन्त घटाते बढ़ाते आए हैं। शंका समाधान के लिए आर्य समाज सूरजपुर के पूर्व प्रधान पं. महेन्द्र कुमार आर्य से सम्पर्क किया जा सकता है।
पं.महेन्द्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान, आर्य समाज सूरजपुर।
फोन-9910550037
Comments
Post a Comment