Skip to main content

क्या है भारत का गौरव


भारत माता की पावन माटी को अपने रक्त से सींच कर हमारे लिए दुनिया की सबसे उर्वरा भूमि बनाने वाले महापुरुषों की जीवनगाथा प्रस्तुत कर उन्हें स्मरणांजलि अर्पित करने के साथ देश के कर्णधारों को ऐतिहासिक जानकारी देने वाला ग्रंथ


Comments

Popular posts from this blog

स्व आयु में वृद्धि-मनुष्य के अधीन

परमात्मा ही प्राणों का उत्पादक तथा जीवों को उनके शुभाशुभ कर्मोँ के कर्म-फल रूप भोग में,उन्हें एक ‘निश्चित काल-खण्ड’ के लिये प्राणों की निश्चित मात्रा देता है। इस निश्चित मात्रा से स्पष्ट है कि श्वास और प्रश्वास की एक निश्चित संख्या परमात्मा द्वारा जीवों को प्रदान की गई है। इसी प्रकार परमात्मा ने जीवों को संसार में जन्म से पूर्व प्राण रहते अर्थात् श्वास और प्रश्वास चलते रहने के मध्य, भोगों की एक निश्चित मात्रा जीवों को पिछले जन्मों में कृत शुभाशुभ कर्मों के अनुसार भोग रूप में प्रदान की है। सभी जीवों में एक मनुष्य ही ऐसा जीव है जो ज्ञान तथा विज्ञान उपार्जन कर अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा प्राण और भोगों के उपभोग पर नियंत्रण रख अपनी आयु में वृद्धि कर सकने मेें सफलता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा से प्राप्त श्वास-प्रश्वास की संख्या तथा प्राप्त भोगों की मात्रा को व्यवस्थित रूप तथा योजनाबद्ध ढंग से व्यय करके अपनी आयु की वृद्धि कर सकता है। प्रथम विषय-भोग में अत्यधिक आसक्ति को त्याक मनुष्य प्राणों की प्राप्त पूंजी के व्यय पर नियंत्रण कर अधिक काल तक शरीर को जीवित रख सकने की व्यवस्था...

डाकू नहीं प्रचेतस ऋषि के दसवें पुत्र थे महर्षि वाल्मीकि

प्रारम्भिक जीवन में डाकू नहीं थे,तपस्या करने वाले महान ऋषि थे 16 अक्टूबर को होने वाली महर्षि जयंती पर विशेष श्री वाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभ प्रद। उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृहणीष्व मेऽर्चनम्। शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जो वाल्मीकि के नाम से परिचित न हो लेकिन उनके वृत्तान्त के बारे में इतिहास खामोश है। उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब हमें रामायण महाकाव्य में दृष्टिगोचर होता है। इस कृति ने महर्षि वाल्मीकि को अमर बना दिया। उनके अविर्भाव से संस्कृत साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इससे पूर्व का युग दैव युग के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि संस्कृत के सभी महान कवियों व नाटककारों के प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे सब कवियों के गुरु हैं। रामायण सभी काव्यों का मूल है। उनके शूद्र होने की कहानी मनगढं़त है किसी प्रमाणिक ग्रंथ में इसका उल्लेख भी नहीं है। ्श्री राम जब सीता को वाल्मीकि के आश्रम में छोडऩे के लिए लक्ष्मण को भेजते हैं तो कहते हैं कि वहां जो वाल्मीकि मुनि का आश्रम है, वे महर्षि मेरे पिता के घनिष्ठ मित्र हैं। महर्षि वाल्मीकि कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने तपस्या की थी।...

अथर्व वेद के रचयिता हैं अंगिरा ऋषि

प्रथम मन्वन्तर के सप्तऋषियों में मरीचि, अत्रि, पुलाहा, कृतु,पुलस्त्य,वशिष्ठ, अंगिरा ऋषि थे । ऐसा कहा जाता है कि अथर्वन ऋषि के मुख से सुने मंत्रों के आधार पर ऋषि अंगिरा ने चार वेदों में से एक अथर्ववेद को साकार रूप दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने तीन अन्य वेदों ऋग्वेद,सामवेद और यजुर्वेद की रचना में भी काफी सहयोग किया। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना में सहायता के लिए अपने मानसपुत्रों और प्रजापति को रचा। उसके बाद उनकी यह इच्छा हुई कि इन मानसपुत्रों और प्रजापतियों का कल्याण कैसे हो, इसके लिए उन्होंने एक बुद्धि यानी ज्ञानी पुत्र की आवश्यकता महसूस की और उन्होंने अपने पूर्ण तेज के साथ एक पुत्र की रचना रची। ये वही रचना थे महर्षि अंगिरा जी। अंगिरा ऋषि शुरू से बहुत ही तेजवान,बुद्धिमान और आंतरिक अध्यात्मिक क्षमता वाले थे। अंगिरा ऋषि में सम्पूर्ण जगत को ज्ञान देने की क्षमता थी। अंगिरा ऋषि को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्माजी ने संदेश दिया कि अंगिरा तुम मेरे तीसरे मानस पुत्र हो। तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि तुम्हारा जन्म क्यों हुआ है और तुम इस जगत में क्यों आए हो? यह तुम्हें बताता हूं। संदेश...