प्रारम्भिक जीवन में डाकू नहीं थे,तपस्या करने वाले महान ऋषि थे 16 अक्टूबर को होने वाली महर्षि जयंती पर विशेष श्री वाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभ प्रद। उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृहणीष्व मेऽर्चनम्। शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जो वाल्मीकि के नाम से परिचित न हो लेकिन उनके वृत्तान्त के बारे में इतिहास खामोश है। उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब हमें रामायण महाकाव्य में दृष्टिगोचर होता है। इस कृति ने महर्षि वाल्मीकि को अमर बना दिया। उनके अविर्भाव से संस्कृत साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इससे पूर्व का युग दैव युग के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि संस्कृत के सभी महान कवियों व नाटककारों के प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे सब कवियों के गुरु हैं। रामायण सभी काव्यों का मूल है। उनके शूद्र होने की कहानी मनगढं़त है किसी प्रमाणिक ग्रंथ में इसका उल्लेख भी नहीं है। ्श्री राम जब सीता को वाल्मीकि के आश्रम में छोडऩे के लिए लक्ष्मण को भेजते हैं तो कहते हैं कि वहां जो वाल्मीकि मुनि का आश्रम है, वे महर्षि मेरे पिता के घनिष्ठ मित्र हैं। महर्षि वाल्मीकि कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने तपस्या की थी।...